TOP STORIES

08856 सहरसा स्पेशल फेयर ट्रेन में यात्रियों की जानवरों जैसी दुर्दशा: न शौचालय साफ, न खाना ठीक, और न ही सुनवाई

गर्मी की छुट्टियों में उत्तर भारत की ओर यात्रियों की भारी भीड़ को देखते हुए रेलवे द्वारा सप्ताह के रविवार के दिन चलाई जाने वाली 08856 सहरसा स्पेशल फेयर ट्रेन एक “विशेष सेवा” कम और “यातना ट्रेन” ज़्यादा बन गई है। यात्रियों को न बुनियादी सुविधा मिल रही है, न शुद्ध खाना और न ही सफाई—सिर्फ धक्का, भीड़ और बदबू मिल रही है।

हर हफ्ते देर, फिर देरी और अंत में बेहाल यात्राएं

यह ट्रेन शाम 4:35 बजे लोकमान्य तिलक टर्मिनस (LTT), मुंबई से रवाना होती है। लेकिन शुरू से ही इसका समय अनिश्चित है—लगभग हर बार आधा से एक घंटा लेट से खुलती है। यात्रा के दौरान लेट-लतीफी बढ़ती जाती है और 12 घंटे तक की देरी सामान्य हो चुकी है। यानी अगर कोई सहरसा समय पर पहुंचने की उम्मीद लगाए बैठा है, तो उसकी उम्मीद इस ट्रेन में चढ़ते ही दम तोड़ देती है।

जनरल डब्बे में इंसानों से बुरा हाल

इस ट्रेन में 4 जनरल डब्बे हैं, जिनकी सीट क्षमता करीब 80 यात्री प्रति डब्बा है। लेकिन गर्मी की छुट्टियों में एक-एक डब्बे में 300 से 400 लोग जानवरों की तरह ठूंसे जा रहे हैं। यात्री खड़े रहने की जगह भी मुश्किल से पा रहे हैं। गर्मी, उमस और बदबू के बीच लोगों की हालत इतनी बदतर हो जाती है कि कई बार बच्चे और बुज़ुर्ग बेहोश तक हो जाते हैं।

शौचालय गंदगी का ढेर, फ्लश सब खराब

चार जनरल कोचों में कुल 16 शौचालय हैं, पर उनमें से कोई भी ठीक से कार्य नहीं करता। इसके फ्लश काम नहीं करते, पानी नहीं आता और शौचालयों में गंदगी फैली रहती है। यात्रियों के अनुसार, बदबू इतनी होती है कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।

रेलवे अधिकारी इस पर सफाई देते हुए कहते हैं, “लोग क्षमता से ज्यादा आते हैं, फ्लश चलाना नहीं जानते, इसलिए खराब हो जाते हैं।” यानी जिम्मेदारी जनता पर, व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं।

सफाईकर्मी गायब, कोई हेल्पलाइन नहीं

देश की ज़्यादातर ट्रेनों में शौचालय के पास के वाश बेसिन के ऊपर सफाईकर्मी का मोबाइल नंबर चिपका रहता है ताकि कोई शिकायत हो तो मदद ली जा सके। लेकिन इस ट्रेन में ऐसी कोई सूचना नहीं दी जाती। न सफाईकर्मी दिखते हैं, न कोई जवाबदेही है। कोच के भीतर कचरे का अंबार लगा रहता है।

IRCTC वेंडरों का खेल: वासी खाना, ऊंचा दाम

यात्रियों ने बताया कि ट्रेन में खाना देने वाले IRCTC वेंडर सुबह के बचे हुए, खराब हो चुके खाने को शाम में ₹120 में बेचते हैं—वो भी जनरल डब्बों के यात्रियों को। बदबू मारते खाने से उल्टी होना आम बात हो गई है। पैसे लेने के बाद वेंडर तुरंत गायब हो जाते हैं और शिकायत करने पर कोई नहीं सुनता।

यात्री विवश, सिस्टम खामोश

इन डब्बों में सफर करने वाले अधिकांश लोग गरीब प्रवासी मजदूर, छात्र और नौकरीपेशा लोग हैं। टिकट की कीमत कम है, लेकिन इस कीमत पर उन्हें मिलती है अपमानजनक यात्रा—न सुविधाएं, न सम्मान, न इंसानियत।


क्या करेगा रेलवे प्रशासन?

रेलवे मंत्रालय और IRCTC से यह सवाल पूछना ज़रूरी है:

क्या जनरल कोचों में सफाईकर्मी तैनात किए जाएंगे?

क्या शौचालयों की मरम्मत और निगरानी की जाएगी?

क्या खानपान व्यवस्था में पारदर्शिता लाई जाएगी?

क्या भीड़ कम करने के लिए अतिरिक्त ट्रेनें या कोच लगाए जाएंगे?

और सबसे महत्वपूर्ण स्पेशल ट्रेनों को देश की अन्य ट्रेनों की तरह भारतीय रेल विभाग द्वारा समय से चलाए जाने का प्रयत्न किया जाएगा।

अगर ये सवाल अनुत्तरित रह गए, तो एक “विशेष ट्रेन” सिर्फ एक “संवेदनहीन यात्रा” का पर्याय बन कर रह जाएगी।