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कट्टर शिवसैनिकों को अपेक्षित शिवसेनाप्रमुख की भूमिका मे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एकदम सटीक

(राजेश सिन्हा)

उद्धव ठाकरे या फिर उनके समर्थक, भले ही राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिवसेना तोडने का आरोप लगाकर कर, दिन रात गाली देते है। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसैनिकों को अपेक्षित सच्चे शिवसेनाप्रमुख की भूमिका पूरे निष्ठा और सम्मानजनक ढंग से निभाया है।

और इसमे कोई दो राय नहीं की राज्य के साथ देश भर के कट्टर शिवसैनिक मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा शिवसेना प्रमुख का पदभार संभालने के बाद से लेकर अभी तक के सभी निर्णयों को सराह रहे है। और साफ शब्दों मे यह भी कह रहे है कि यह सब उद्धव ठाकरे के शिवसेना प्रमुख रहते कभी संभव नहीं होता।

ज्ञात हो कि लगभग 90 के दशक में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना में गठबंधन होने के बाद भाजपाइयों ने शिवसेना प्रमुख बाला साहब से यह साफ कहा था की शिवसेना की भूमिका राज्य में हमेशा से बड़े भाई की रहेगी। और भाजपा छोटे भाई की भूमिका में रहेगा। राज्य की सत्ता मे ज्यादा सीटे दोनों मे से कोइ भी पार्टी लाए, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवसैनिक ही बैठेगा।

इसी एजेंडे पर राज्य में 90-95 में महायुति का शासन काल रहा। जिसमें मुख्यमंत्री पहले मनोहर जोशी हुए, फिर शिवसेना के ही नारायण राणे ने अपना कार्यकाल पूरा किया। जबकि इसी दौरान भाजपा के नेता स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे 5 वर्ष उपमुख्यमंत्री के पद पर विराजमान रहे। पूरे 5 साल दोनों दलों में किसी भी तरह का विवाद, पद के लिए नहीं दिखा था।

लगभग पंद्रह वर्ष बाद वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां के फूल 288 विधानसभा सीटों में से 122 सीटे मिली थी। जबकि शिवसेना को 63 विधानसभा सीटे मिली थी। उस दौरान के शिवसेनाप्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा को गठबंधन के नियमों का याद दिलाते हुए बहुत दवाव बनाया था। और राज्य में मुख्यमंत्री पद शिवसेना को देने की जिद की थी।

लेकिन भाजपा ने उद्धव ठाकरे को ठेंगा दिखाते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बिना शर्त समर्थन लेकर सरकार बना ली थी। यह सिलसिला 6-7 महीने तक चला था फिर मजबूर होकर उद्धव ठाकरे ने भाजपा से गठबंधन किया था । जिसमें शिवसेना को उपमुख्यमंत्री का भी पद नहीं मिला था।

वर्ष 2019 मे शिवसेना के लिए स्थितिया अच्छी बनी थी। इस बार भाजपा को पिछले चुनाव के 122 सीटो के बनिस्पत इस बार 105 सीटे ही मिली थी। फिर भी उद्धव ठाकरे भाजपा को मुख्यमंत्री पद देने के लिए मना नहीं पाए, और राज्य मे शिवसेना, राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी और कॉंग्रेस पार्टी के गठबंधन से सरकार का गठन किया। जिसमे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनाए गए।

बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना ही हिंदुत्व के एजेंडे के तहत की थी। और उन्होंने अपने अनेक भाषणों में कहा था कि अगर मेरे पार्टी को कभी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की नौबत आई, तो मैं अपने पार्टी को बंद करना ही अच्छा समझूँगा।

शिवसैनिक बाला साहब के लिए ऊर्जा का काम करते थे, और शिव सैनिकों के लिए बाला साहब के वक्तव्य आदेश होते थे। और मरते दम तक उन बातों को अपने जीवन में शब्दशः अनुकरण करने की कोशिश करते हैं।

और इन्हीं कारणों से जब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस से गठबंधन कर मुख्यमंत्री की शपथ ली तो आम शिवसैनिकों के साथ एकनाथ शिंदे को भी उद्धव ठाकरे का यह निर्णय बेहद शर्मिंदगी भरा लगा था। इस बात का जिक्र एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद के अपने अनेक भाषणों मे भी किया है।

एकनाथ शिंदे को जल्द मौका भी मिला और उन्होंने भाजपा की मदद से राज्य में महायुती की सरकार बनाइ। यहां उन्होंने भाजपा द्वारा गठबंधन की शुरुआती दौर में स्व शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे से किए गए वादों का भाजपा नेताओ को याद दिलाई और इस पर कडा रुख अपनाते हुए सबसे पहले राज्य के मुख्यमंत्री का पद अपने नाम किया।

इस पद के लिए भाजपा के देवेंद्र फडणवीस का नाम आगे आगे चल रहा था। लेकिन एकनाथ शिंदे ने भाजपा नेतृत्व को मजबूर कर मुख्यमंत्री पद शिवसेना के लिए लिया।

भाजपा से गठबंधन को हर कट्टर शिवसैनिक स्वाभाविक गठबंधन मानते हैं, क्योंकि शिवसेना और भाजपा दोनों दल अपने शुरुवात से ही हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीति करते आए हैं।

राज्य के विकास कार्यों पर निर्णय लेने मे कोई झिझक नहीं, सहयोगी दल भाजपा के राज्य और केन्द्रीय स्तर के नेताओ से बढ़िया सामजस्य, अपने दल के बड़े से लेकर छोटे शिवसीनिकों पर संतुलित प्रेम,और विरोधियों को शिवसैनिक के स्टाइल मे जबाव, ये सब गुण, एकनाथ शिंदे को शिवसेनाप्रमुख की भूमिका मे एकदम सटीक बिठाता है।