राजनीतिक मेंढक फिर टर्राने लगे
(कर्ण हिंदुस्तानी )
हमारे भारत महान में हर राजनीतिक दल के दरकिनार हो चुके नेतागण चुनाव नज़दीक आते ही अपनी उपस्थिति का एहसास दिलवाने के लिए कुछ ना कुछ बयानबाज़ी करने लगते हैं। इस बेतुकी बयानबाज़ी से राजनीतिक माहौल में थोड़े समय के लिए गर्मी ज़रूर आ जाती है मगर आगे चल कर कुछ हाथ नहीं लगता। अब योग गुरु और पतांजलि के सर्वेसर्वा बाबा रामदेव को ही ले लीजिये। इन साहब को अब लगने लगा है कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इस बारे में कोई निश्चित नहीं है। यानी कि २०१९ में नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री दुबारा बनने पर ही बाबा ने सवालिया निशाँ लगा दिया है। कल तक मोदी जी के गुणगान करने वाले बाबा रामदेव का व्यवसाय चल निकला तो उन्हें मोदी जी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने पर ही शंका होने लगी। ऐसे बे पैंदी के लोटे को कुछ सिखाना या बताना ही गलत होगा।
कांग्रेस के राज में दिल्ली के रामलीला मैदान से जनाना कपडे पहन कर भागने वाले बाबा रामदेव को यदि सियासत ही करनी है तो आ जाएं खुल कर मैदान में। फिर पता चलेगा कि विरोधी पक्ष किस तरह से परेशान करता है। दूसरों को बाल काले रखने का उपाय बताने वाले बाबा को अपने सफ़ेद होते जा रहे बालों की चिंता करनी चाहिए , ना कि इस बात की चिंता करनी चाहिए कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा ?
अब बात करें एक दूसरे मेंढक यानी कि शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे की , इन महोदय को अपने सन्मानिये पिता जी की वजह से राजनीती विरासत में मिली है। स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे जी की मेहनत का फल उद्धव खा रहे हैं। बीजेपी के साथ गठबंधन कर मंत्री पद तक पहुँचने वाले शिवसेना के सांसदों और विधायकों को एक बार भी उद्धव ठाकरे ने गठबंधन से इस्तीफा देने का आदेश नहीं दिया। मगर हर भाषण में उद्धव बीजेपी को कोसते रहते हैं। मोदी जी की निंदा करते रहते हैं। क्या इसे पीठ में छुरा घोंपना नहीं कहा जा सकता। यदि उद्धव को बीजेपी के साथ रहना पसंद नहीं है और उन्हें गठबंधन का बंधन रास नहीं आ रहा है तो रोका किसने है ? आज ही गठबंधन को त्याग दें वरना इनका नाम भी बरसाती मेंढक में ही रखा जाएगा।
अब आखिर में हिन्दुस्तान की राजनीती के सबसे बड़े बरसाती मेंढक यानी कि शरद पवार की बात करते हैं। सोनिया गाँधी को विदेशी कहकर कांग्रेस से बाहर निकल कर १९९९ में राष्ट्रवादी कांग्रेस बनाने वाले शरद पवार को अब सोनिया और उनके पुत्र राहुल गाँधी में देश का नेतृत्व नज़र आने लगा है। सतारा में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद शरद पवार ने कहा कि राहुल गाँधी बेहतर नेतृत्व कर रहे हैं। शरद पवार का राजनीतिक रिकॉर्ड सभी को पता है। और उनके इन्ही विवादित नीति के कारण महाराष्ट्र को प्रधानमंत्रित्व नही मिला.वरना शरद पवार जैसे मंजे हुए राजनीतिज्ञ भारत में बिरले ही बचे है.
उम्र के बड़े पड़ाव पर खड़े शरद पवार को पता है कि उनकी राजनीतिक शक्ति अब खत्म हो रही है। इसलिए उनको अपनी पुरानी आका का नेतृत्व सक्षम नज़र आ रहा है। ऐसे में शरद पवार को चाहिए कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को कांग्रेस में विलीन कर दें और मैडम के चरणों में घुटने टेक दें क्योंकि अब शरद पवार भी राजनीतिक मेंढक की तरह टर्राने लगे हैं।