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ठाकरे पुत्रो के हवाले महाराष्ट्र का भविष्य

( कर्ण हिन्दुस्तानी )
महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीती पर नज़र घुमाएं तो इस समय महाराष्ट्र की राजनीती अधर में लटकी हुई है , मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री शपथ ले चुकें हैं लेकिन मंत्रीमंडल का कोई पता नहीं है।

शिवसेना से अलग होकर एकनाथ शिंदे ने अपना गुट बना लिया है और बीजेपी इस गुट को समर्थन देकर सत्ता में दूसरे दर्जे की हिस्सेदार बन गयी है।

….. अब बात करें इन दो राजनीतिक दलों के अलावा तीसरे दल की। यह दल है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना। वैसे तो शिवसेना और मनसे के प्रमुखों में निजी तौर पर रिश्तेदारी है मगर राजनीति के मैदान में मनसे प्रमुख राज ठाकरे , शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे पर मौखिक रूप से भारी पड़ रहे हैं ,

राज ठाकरे की भाषण शैली अपने चाचा और उद्धव के पिता स्वर्गीय बाला साहेब से हूबहू मिलती है। जबकि उद्धव ठाकरे भाषण में कमजोर साबित होते हैं।

उद्धव ठाकरे ने अपने पिता के साथ रहकर भी राजनीती के छक्के पंजे ढंग से नहीं सीखे , जबकि राज ठाकरे ने राजनीती को भलीभांति आत्मसात किया हुआ है।

अब बात करें कि महाराष्ट्र की राजनीती का भविष्य क्या है ? तो उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को एक तरह से शिवसेना की कमान सौंप दी है।

आदित्य ठाकरे अब जनता में जाकर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पिता के साथ एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों ने गद्दारी की है। शिवसेना और स्वर्गीय बाला साहेब के सपनों को एकनाथ शिंदे एंड कंपनी ने तोड़ा है।

यहाँ आदित्य ठाकरे कभी कभी मराठी माणूस का भी मुद्दा उठाते हैं , मगर कम ही यह मुद्दा आदित्य के मुँह सुनने को मिला है।

उद्धव सरकार के तख्ता पलटने के बाद मनसे प्रमुख राज ठाकरे की राजनीतिक आकांक्षाएं भी जाग उठीं और उन्होंने भी अपने बेटे अमित ठाकरे को सक्रीय राजनीती में उतारने का फरमान जारी कर दिया।

महाराष्ट्र नवनिर्माण विद्यार्थी सेना के अध्यक्ष पद पर विराजित अमित ठाकरे की पिछले कुछ दौरों के बाद झिझक खत्म हुई है।

…. अमित ठाकरे ने भी अब राजनीतिक चुटकियां लेना शुरू कर दिया है। आदित्य ठाकरे ने ढाई साल तक मंत्री पद भोग कर काफी कुछ सीखा है।

जबकि अमित ठाकरे ने अपने पिता की आकर्षण भाषण शैली को अभी तक आत्मसात नहीं किया है। …. दोनों ही ठाकरे पुत्र इस वक़्त महाराष्ट्र के युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। .

… दोनों का पहनावा देखें तो आज के युवाओं की तरह ही है , दोनों में से कोई भी खुद को नेताओं के भेष में प्रस्तुत नहीं करना चाहता।

बात मनसे की करें तो उद्धव सरकार के तख्ता पलटने के बाद महाराष्ट्र की युवा पीढ़ी राज ठाकरे की तरफ आकर्षित हुई है। मगर राज ठाकरे की शैली और हाल ही में मस्जिदों पर से ध्वनि प्रक्षेपण हटाए जाने के मुद्दे को लेकर एक ख़ास समुदाय में थोड़ा रोष पैदा हुआ था। फिर भी मनसे मौजूदा स्थिति में अपनी उपस्थिति जोरदार ढंग से दर्शा रही है।

…. अमित ठाकरे भी मनसे को किला फतह करवाने के लिए कमर कसकर दौरे कर रहे हैं। अब आदित्य ठाकरे की बात की जाए तो आदित्य ठाकरे की भाषण शैली और देहबोली उद्धव से काफी मिलती है। (स्वाभाविक तौर पर पिता होने की वजह से मिलनी भी चाहिए )

लेकिन आदित्य को अपनी भाषण शैली में बदलाव लाकर तीखे प्रहार करने की शैली अपनानी होगी। पिता की बीमारी का बहाना कर लोगों की भावनाओं को छेड़ने के बजाए अपनी भूल कहाँ हुई इस पर ध्यान देना होगा। क्योंकि महाराष्ट्र की जनता जान चुकी है कि अब महाराष्ट्र ठाकरे औलादों के हाथों में जाने की तैयारी कर चुका है।

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