कल्याण अस्पताल कांड: मीडिया के साजिशन आधे सच से उपजा भाषावाद, सच्चाई का दूसरा चेहरा?”
कल्याण पूर्व के एक निजी अस्पताल में घटित हिंसक झगड़े ने बीते कुछ दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति और मीडिया में आग लगा रखी है। पहले इस मामले को “कुछ” मराठी मीडिया संस्थानों द्वारा एक गैर-मराठी युवक द्वारा मराठी परिचारिका पर हमले के रूप में जोर शोर से पेश किया गया। लेकिन अब कल्याण के ही वरिष्ठ पत्रकार कर्ण हिंदुस्तानी द्वारा सामने लाई गई जानकारी इस पूरे प्रकरण को एक नए और पेचीदा मोड़ पर ले आती है।
क्या था मामला?
कल्याण पूर्व के एक अस्पताल में एक युवक ने एक महिला परिचारिका के साथ कथित तौर पर मारपीट की। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर युवक को दोषी मानते हुए पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता के तहत मामला दर्ज किया और उसे गिरफ्तार कर लिया।
इस घटना के बाद, राज्य भर में मराठी बनाम परप्रांतीय की लहर तेज़ हो गई। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर खुलकर बयानबाज़ी की और पूरे घटनाक्रम को “मराठी अस्मिता” से जोड़ दिया गया।
परंतु, अब क्या नया सामने आया है?
वरिष्ठ पत्रकार कर्ण हिंदुस्तानी ने सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट में दावा किया है कि प्रारंभिक वायरल सीसीटीवी फुटेज आधी सच्चाई दिखा रहा था। उनका कहना है कि पूरी वीडियो देखने पर यह स्पष्ट होता है कि घटना की शुरुआत खुद महिला परिचारिका द्वारा युवक की बहन को थप्पड़ मारने से हुई थी।
इसके बाद युवक ने अपनी बहन पर हाथ उठाने वाली परिचारिका पर हमला कर दिया। हिंदुस्तानी का सवाल है—”क्या एक भाई अपनी बहन को पिटते हुए चुप देखे सिर्फ इसलिए कि उस पर पहले से आपराधिक मामले दर्ज हैं?”
राजनीति और मीडिया की भूमिका पर सवाल
कर्ण हिंदुस्तानी का तर्क यह भी है कि यदि युवक मराठी होता तो शायद मामला इतना तूल पकड़ता ही नहीं । “चुनावी मौसम है, और गैर-मराठी युवक के बहाने कुछ दल और उनके सहयोगी मीडिया के सहारे अपनी राजनीति की गाड़ी खींच रहे हैं,”
मनपा के स्वास्थ्य विभाग की ज़िम्मेदारी भी जांच के दायरे में आनी चाहिए, क्योंकि परिचारिका द्वारा किसी मरीज की बहन को थप्पड़ मारना एक बड़ी नैतिक और प्रशासनिक चूक है।
महत्वपूर्ण सवाल जो अब उठ रहे हैं
1. क्या मीडिया ने साजिशन शुरुआत में केवल एकतरफा खबर चलाई?
2. क्या अस्पताल प्रशासन ने ऐसे स्टाफ को रखा जो हिंसक व्यवहार करते हैं?
3. क्या चुनावी राजनीति में ‘भाषा’ को हथियार बनाकर घटनाओं की वास्तविकता दबा दी जाती है?
4. क्या मरीजों और उनके रिश्तेदारों की भी सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है, जैसे डॉक्टरों की है।
यह घटना अब केवल एक मारपीट का मामला नहीं रही। यह एक सामाजिक, राजनीतिक और मीडिया-संबंधी विमर्श का हिस्सा बन चुकी है।
पत्रकार कर्ण हिंदुस्तानी का सवाल बिल्कुल वाजिब है—”आखिर मरीजों और उनके रिश्तेदारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?” यदि सच्चाई यही है कि मारपीट की शुरुआत स्टाफ ने की, तो अस्पताल प्रशासन को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।
कल्याण की इस घटना ने यह भी साबित किया है कि आधी अधूरी जानकारी और साजिशन मीडिया रिपोर्टिंग, भावनात्मक उबाल और भाषाई पहचान मिलकर कैसे एक सामान्य घटना को सामुदायिक विभाजन का कारण बना सकती है।

