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पानी बोतल बेचने वाले बिक्रेता जानबूझ कर तोड़ देते है कल्याण बस स्टैंड के प्याऊ की पाइप लाइन.

कल्‍याण रेलवे स्‍टेशन के पास बने एसटी स्‍टैंड के अंतर्गत यदि अन्‍य अनियमितताओं को नज़रअंदाज कर दिया जाए तो भी यात्रियों की सबसे आवश्‍यक आवश्‍यकता है पीने का पानी और शौचालय, जिनपर प्रशासन की निगाह भले न हो पर कई स्‍वयंसेवी संस्‍थाओं का ध्‍यान अवश्‍य है। यहां पर यात्रियों के लिए पीने के पानी की व्‍यवस्‍था कल्‍याण अग्रवाल समाज ने वर्षों पहले की थी।

यहां पर कैंटीन के बगल में एसटी पुलिस चौकी के पास बड़ा ही सुंदर प्‍याऊ बनवाया गया था परंतु इसके नलों में पानी आपूर्ति न होने के कारण यह बंद पड़ा रहता है।सूत्र आश्चर्यजनक रूप से इसके लिए पानी बोतल सप्लाई करने और इस बस अड्डे पर बेचने वाले लोगो द्वारा इस प्याऊ के पाइप लाइन तोड़ने की सच्चाई बयान करते है.

ज्ञात हो कि अग्रवाल समाज की तरफ से स्थापित इस प्याऊ के रख रखाव का जिम्मा भी इन्ही के पास है और इसमें पानी की आपूर्ति मनपा की पाइपलाइन से की जाती है। और हर बार असामाजिक तत्वों द्वारा यहाँ की पाइप लाइन तोड़े जाने पर इसकी मरम्मत भी करवाती है लेकिन बार-बार यह जलापूर्ति खंडित हो जाने से परेशान यात्रीयो को पानी बोतल खरीद कर अपनी प्यास बुझानी पड़ती है.यात्री जब इस प्याऊ के बारे में जब आसपास में पूछते हैं तो बताया जाता है कि मनपा की जलापूर्ति सही नहीं है और लोग बिना सोचे समझे कल्‍याण मनपा को कोसते रहते हैं।

नल चालू नहीं रहने के कारण यात्री यहां नहीं आते हैं तथा इस जगह का इस्‍तेमाल पुलिस वाले अपनी दुपहिया पार्किंग के लिए करने लगे हैं। हाल ही में इस प्‍याऊ की जलापूर्ति को फिर से चालू करवाय गया है परंतु पार्किंग व्‍यवस्‍था नहीं बदली है।  बदले भी कैसे? क्‍योंकि ये पार्किंग किसी और की नहीं बल्कि पुलिस बल की है। यदि मान भी लिया जाए कि चार पुलिसकर्मी यहां ड्युटी करते हैं तो पार्किंग कहां करें! परंतु इस परिसर में  हमेशा 10 से 15 दुपहिए खड़ी रहती हैं। यानी कल्‍याण पश्चिम में रहने वाले और बाहर किसी अन्य शहर में ड्युटी करनेवाले पुलिसकर्मी भी यही अपनी गाड़ी पार्क कर निकल जाते हैं।

पिछले दिनों जब इस प्‍याऊ में मनपा द्वारा पानी के पाइप का कनेक्‍शन चेक किया जा रहा था तो पाया गया कि बीच में कहीं पर पाइप काटकर उसमें पत्‍थर डाल दिए गए हैं और पाइप को ऊपर उठा दिया गया है। आसपास के लोगों ने बताया कि यह असामाजिक तत्‍वों का काम है। यह बात बिल्‍कुल सही है कि ऐसा करनेवाला असामाजिक ही होगा और समाज में सामाजिक होने का ढोंग रचता होगा। इस मामले को सीधे तौर पर यदि देखा जाए तो प्रथमद्रष्‍ट्या यह ज्ञात होता है कि इस कनेक्‍शन को काटने से तथाकथित असामाजिक तत्‍व को कोई फायदा नहीं है।

परंतु प्रश्‍न यह उठता है कि यहां मुफ्त में यदि समाज के निम्‍नमध्‍यमवर्गीय यात्रियों को साफ पानी पीने को मिलता है तो वह बोतल का पानी क्‍यों खरीदेगा? इस प्‍याऊ के चालू रहने से सीधे तौर पर पानी बेचनेवाले को नुकसान होता है। दूसरी बात, जिस जगह पर कनेक्‍शन काटा गया है वहां वही लोग जा सकते हैं जो यहां के घुले-मिले हैं या एसटी स्‍टैंड के स्‍टाफ हैं। एसटी स्‍टैंड के स्‍टाफ को भी इस प्‍याऊ  से कोई नुकसान नहीं है बशर्ते कोई व्‍यक्तिगत या सामाजिक खुन्‍नस  न हो। इसलिए शक की सूई सीधे पानी बेचनेवालों की ओर जाती है और समाज को, यात्रियों को इसपर गौर करना होगा।

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