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रेलवे अस्पताल में नजरंदाज किये जा रहे रेलवे कमियों, स्टेशन पर कार्यरत ब्लड बैंक नही करते मदद

रिटायर रेलवे कर्मी, मरीज जगदीश श्रीवास्तव

कल्याण:- रेलवे के जरूरतमंद बीमार कर्मचारियों को मुफ्त रक्त देने के बात कह कर संकल्प संस्था रेलवे स्टेशनों पर रक्त दान शिबिर कैंप लगा कर  सैकड़ो बोतल रक्त इकट्ठा करती है। लेकिन जरूरत पड़ने पर अक्सर रेलवे के बीमार कर्मचारियों को स्टॉक में रक्त ना होने का बहाना कर उन्हें चलता करती है।

खून की जरूरत जिस बीमार व्यक्ति को होती है उन्हें तुरंत खून देना रहता है। चुकी कर्मचारियों को मालूम होता है कि संकल्प नामक संस्था रेलवे कर्मचारियों को खून देने में मदद करती है। लेकिन ऐसा नहीं होता है।

इसका जीता जागता उदाहरण रेलवे के रिटायर जगदीश श्रीवास्तव जी है. जिनको कल्याण के रेलवे अस्पताल में एडमिट किया गया. जहां डॉक्टरों ने उन्हें खून और प्लेटलेट चढ़ाने की बात कहते हुए एक फॉर्म पर लिख कर दिया और कहा कि संकल्प से जाकर खून की बोतल और प्लेटलेट लेकर आओ ।

रात को जैसे ही जगदीश के रिश्तेदार संकल्प पहुंचे वहा मौजूद कर्मचारी ने फॉर्म देखते हुए कहा कि ये ब्लड ग्रुप यहां नहीं है। मरता क्या नहीं करता, जगदीश के रिश्तेदार फिर रुक्मिणी बाई अस्पताल के सेकेंड फ्लोर स्थित अर्पण ब्लड बैंक में पहुंचे.

वहां खून तो उन्हें तुरंत मिल गया, लेकिन प्लेटलेट के लिए वहां मौजूद कर्मचारी ने कई जगह फोन पर संपर्क करने के बाद कहा कि यहां डोंबिवली, मुलुंड कहीं भी प्लेटलेट उपलब्ध नहीं है आप को रात दो बजे तक नासिक से प्लेटलेट मांगा कर दे सकते है। जिसकी उन्होंने कुल कीमत 13 हजार से अधिक बता दिया।

बता दें कि रेलवे अस्पताल को बीमार कर्मचारी  का पूरा देख भाल करना होता है। यहां तक कि खून वगैरह लाने की भी जिम्मेदारी रेलवे की ही होती है। लेकिन रेलवे अपना यह काम बीमार व्यक्ति के घरवालों पर थोप देता है। दूरदराज से आये बीमार व्यक्ति के परिजन जो कि कल्याण के रास्तो से वाकिब नहीं होते है उन्हें रात के समय संकल्प और अर्पड ब्लड बैंक जैसे स्थान का रिक्शा करके ढूढना और जाना पड़ता है।

ध्यान देने वाली बात है कि रात के समय खून और प्लेटलेट जिसकी कीमत 12 हजार से अधिक है, कोई गरीब आदमी इतने पैसों का इंतजाम कहा से कर पायेगा। यह सारी जिम्मेदारी रेलवे की होने के बावजूद वह पलड़ा झाड़ते हुए नजर आती है।

खैर जगदीश के खाते में उतनी जमा राशि थी. फिरभी उनके खाते से पैसे नहीं निकल पाए जिसका कारण जगदीश के रिश्तेदार उनका एटीएम(डेबिट कार्ड) लेकर चले तो गए लेकिन साथ में एटीएम धारक का मोबाइल नही ले गए. संकल्प के बाद रुक्मिणी बाई अस्पताल के अर्पण ब्लड बैंक से खून लेने में उन्हें रात के 12 बज गए थे।

चुकी जगदीश का एटीएम कार्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का था. और उस बैंक का यह नियम है कि रात के समय एटीएम से कोई भी ट्रांजेक्शन होगा तो पहले उनके रजिस्टर मोबाइल पर एक ओटीपी आएगा जो कि मशीन में फिट करने के बाद ही आप पैसा निकाल सकते है।

यह बात रिश्तेदार को मालूम न होने के नाते उनका मोबाइल अपने साथ नहीं ले गए थे, जैसे ओटीपी का मैसेज आता था रिश्तेदार जगदीश को फोन कर ओटीपी का नंबर पूछने का कोशिश करते थे तबतक मशीन में ओटीपी डालने का टाइम खत्म हो जाता था ।

आख़िरकार जगदीश के एक अन्य रिश्तेदार को पैसा लेकर वहां बुलाया गया फिर खून लेकर देर रात रेलवे अस्पताल पहुंचे और उन्हें खून चढ़ पाया। दूसरे दिन एटीएम से पूरे पैसे निकाल कर अर्पण ब्लड बैंक से प्लेटलेट लिए फिर उन्हें प्लेटलेट चढ़ पाया।

अगर रेलवे कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों को बकायदा निभाते तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलता।ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या सच मे संकल्प संस्था के पास यह खून नहीं था कि उन्हें बहाना कर रेलवे कर्मचारी के रिश्तेदार को भगाना ही था।

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