” वाग्धारा नवरत्न सम्मान ” समारोह संपन्न
तीर थे, कमान हो गए, सिर्फ एक पान के लिए, लोग पीकदान हो गए- शेखर अस्तित्व
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साहित्यकार का जूता फटा है तो ये हमारे मुंह पर जूता है – शीतला प्रसाद दुबे
कर्ण हिन्दुस्तानी
मुंबई। ‘अपनों को प्रतिष्ठित करना, स्वयं को प्रतिष्ठित करना है लेकिन हम खुद को पत्थर बनाने में लगे हैं ।‘ ये विचार महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने तीसरे ‘वाग्धारा’ नवरत्न सम्मान ‘ समारोह में अध्यक्षीय वक्तव्य में कहे । उन्होंने कहा कि सभ्य समाज में यदि साहित्यकार का जूता फटा है तो ये हमारे मुंह पर जूता है । किसी लेखक को यदि किसी भी तरह की आवश्यकता है तो अकादमी या हम व्यक्तिगत स्तर पर पूरा करेंगे । सांताक्रुज में संपन्न इस समारोह में पहली बार एक संस्था ” हिंदुस्तानी प्रचार सभा ” को भी पुरस्कृत किया गया । सभा के ट्रस्टी फिरोज पैच ने सम्मान के प्रत्युत्तर में कहा कि हमारी संस्था शैक्षणिक संस्था है । शिक्षा सबके लिए आवश्यक है इससे राष्ट्र, समाज और व्यक्ति का हित है । सम्मानित नवरत्नों में पत्रकारिता से समाज सेवा विशेषकर वेश्या व्यवसाय से जुड़े 500 बच्चों को पढ़ा-लिखाने के काम से जुड़ी त्रिवेणी आचार्य ने कहा कि यह सम्मान नहीं जिम्मेदारी है । उन्होंने इस काम में आने वाली कठिनाइयों का भी जिक्र किया । रंगमंच कलाकार अश्विनी नांदेड़कर ने कहा कि नाटक रोमांच हैं क्योंकि इसका संबंध जीवन से है, जीवन में रिटेक नहीं होता। रंगमंच में भी रिटेक नहीं होता । मुंगेर से आए उपन्यासकार व कवि नीलोत्पल मृणाल (जिन्होंने चर्चित उपन्यास ‘डार्क हॉर्स’ और ‘औघड़’ लिखे) ने चुटीले अंदाज में कहा कि हिंदी का लेखक होना ही सबसे बड़ा व्यंग्य है । सम्मान थपकी है जो आगे बढ़ाता है, इसलिए सम्मान को ईधन की तरह लेना चाहिए । उनकी ‘उदासी का वसंत’ कविता को खूब पसंद किया गया । वरिष्ठ पत्रकार विमल मिश्र ने कहा कि पत्रकारिता दुधारी तलवार पर चलना है । बिहार विधान परिषद के विधायक देवेशचंद्र ठाकुर ने कहा कि आदमी कोशिश करे तो नेता बन सकता है पर नेता लाख कोशिश कर ले पर आदमी नहीं बन सकता । उन्होंने ऐसे अनुष्ठानों में पूरे सहयोग का आश्वासन दिया । ‘वाग्धारा’ के डॉ. वागीश सारस्वत ने संस्था एवं चयन प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला । अतिथियों ने ‘वाग्धारा’ के अच्छे कार्यो हेतु डॉ. वागीश का स्वागत किया।
चयन समिति में संजीव निगम, संध्या पांडे, अमिताभ श्रीवास्तव थे । निर्णायक टिप्पणी में संजीव निगम ने कहा कि तटस्थ होकर चयन करना चुनौती थी फिर भी श्रेष्ठतम का चुनाव किया गया । ‘वाग्धारा’ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पुरस्कारों पर कभी विवाद नहीं हुआ । व्यंग्यकार सुभाष काबरा ने कहा कि मुंबई को पत्थर दिल कहा जाता है पर ‘वाग्धारा’ जैसी संस्था दर्शाती है कि यहां पत्थरों में भी फूल खिलते हैं । व्यंग्यकार श्रवण कुमार उर्मलिया का पुरस्कार उनकी बेटी प्रियल चतुर्वेदी ने लिया और लिखित वक्तव्य में कहा कि यंत्र और साहित्य में कभी टकराव नहीं हुआ । ये एक शरीर में दो विपरीत धाराएं हैं । संगीत के लिए पंडित रविराज शंकर को सम्मानित किया गया। पंकज त्रिपाठी का सम्मान उनकी पत्नी मृदुला त्रिपाठी ने ग्रहण किया। साहित्य सेवा के लिए दीनदयाल मुरारका, टीवी पत्रकारिता केलिए अवनींद्र आशुतोष को सम्मानित किया। व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली ने व्यंग्य पर बातचीत की और आभार माना। शायर सागर त्रिपाठी, रोमी सिद्दीकी ,कैलाश मासूम, संजय अमान, सुधाकर स्नेह, अमर त्रिपाठी ,आदि ने भी विचार रखे। प्रारंभ में सरस्वती वंदना और कुछ बंदिशें निकिता राय ने प्रस्तुत की । गीतकार अरविंद राही ने स्वागत किया । खूबसूरत संचालन कवयित्री संध्या यादव ने किया। समारोह में पत्रकार गोपाल शर्मा, कमर हाजीपुरी शायर हस्तीमल हस्ती, शगुन श्रीवास्तव, प्रतिमा योगी, ज्योति त्रिपाठी, डॉ. सतीश शुक्ल, विकास कुमार, जेपी सहारनपुरी सहित बड़ी संख्या में लेखक, साहित्यकार, फिल्मकार उपस्थित थे ।