महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव २०१९, आखिर क्यों कम होता जा रहा है वोट प्रतिशत ?
( कर्ण हिंदुस्तानी )
इस बार जिस तरह से मतदाताओं ने मतदान करने में कोताही बरती है वह ना सिर्फ लोकतंत्र के लिए घातक है बल्कि विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए भी गंभीर विचार करने का सन्देश देने वाला है। साल दर साल मतदाताओं की संख्या में कमी आना इस बात का संकेत है कि आम मतदाता नेताओं की घोषणाओं से तंग आ चुका है। वही पुराने चेहरे और वही आश्वासन देख कर और सुन कर जनता बोर हो चुकी है। जनता काम चाहती है। मगर विभिन्न राजनीतिक दल करोड़ों की निधि के सब्जबाग दिखाकर जनता को बहकाने का काम कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों में अब पढ़े लिखे लोगों के बजाए बाहुबलियों का वर्चस्व बन गया है। जो जितना बड़ा अपराधी वह उतना ही बड़ा टिकिट का दावेदार। आम समर्पित कार्यकर्ता टिकिट का ख्वाब तक नहीं देख सकता। बाहुबल के साथ साथ धन पशु होना भी आज का फैशन बन गया है। खुलकर धन का उपयोग किया जाने लगा है।
सोमवार को सम्पन्न हुए चुनावों से तो यही लगता है कि चुनाव लड़ना धन दौलत वालों का ही काम है। चुनाव की घोषणा होने से पहले ही विभिन्न मित्रमंडलों को लाखों रूपये दान स्वरुप दे दिए जातें हैं। कुछ इमारतों के संकुलों में निजी धन से सी सी टी वी लगवा दिए जातें हैं। यह सब स्वच्छ लोकतंत्र का हिस्सा नहीं हैं। जनता को प्रलोभन देने का सिलसिला कुछ उम्मीदवारों ने शुरू किया और आज यह बीमारी लोकतंत्र को दीमक की तरह खाए जा रही है।
राजनीतिक दलों से अपनी सोसाइटियों में काम करवाने के पश्चात जनता भी यही विचार रखती है कि लोकतंत्र के इन कथित सिपहसालारों ने विधानसभा क्षेत्र के लिए कुछ किया हो या ना किया हो हमारा काम तो हो रहा है ना , बस। ऐसे विचारों से लोकतंत्र मजबूत होने के बजाए कमजोर ही होगा। ऐसे में लोकतंत्र के सजग प्रहरियों को गंभीरता पूर्वक विचार करना जरूरी है वरना वोट का प्रतिशत और भी नीचे आएगा।