महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव २०१९, गरम मुद्दे – ठंडा प्रचार
(कर्ण हिन्दुस्तानी )
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं। इन बचे हुए दिनों में सभी दल अपनी अपनी ताक़त झोंकने में लगे हुए हैं मगर जनता सभी दलों के प्रति उदासीन नजर आ रही है। आदर्श आचार संहिता की कड़ाई के चलते उमीदवार फूंक – फूंक कर कदम रख रहे हैं। यही वजह है कि चुनावी हवा का जोर प्रत्यक्ष रूप से कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। बड़े नेताओं की सार्वजनिक सभाएं आयोजित कर मतदाताओं को प्रभावित करने की कवायत भी चल रही है।
मुंबई – ठाणे और महाराष्ट्र के कई विधानसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक की सभाएं हो रहीं हैं तो विपक्षी दलों के नेता भी जमकर सत्ता धारियों को कोस रहे हैं। इस आपसी जंग में जन समस्याओं को कोई भी प्रभावी ढंग से उठा नहीं पा रहा है। कहीं शरद पवार की उम्र को लेकर प्रचार किया जा रहा है तो कहीं राहुल गाँधी के भाषणों का मजाक बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे की घोषणाओं को भी जनता गंभीरता से नहीं ले रही है।
कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के गठबंधन को भी लोग चुनावी गठबंधन और वह भी मजबूरी में किया गया गठबंधन मानकर चल रहे हैं। इन चुनावों में किस दल ने कितने उत्तर भारतियों को टिकिट दिया , किस दल से कितने अपराधी उमीदवार हैं , कितने बागी उमीदवार हैं , कितने पढ़े लिखे उमीदवार हैं यह सब भी चर्चा का विषय है। पहली बार मैदान में प्रत्यक्ष रूप से उतरे आदित्य ठाकरे भी चर्चा का विषय हैं।
मगर बात फिर वहीँ आ कर रूक जाती है कि जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान करने की बात कोई भी दल नहीं करता है। सभी जगह निधि मंजूर होने की बात की जा रही है। इस निधि से काम कब शुरू करेंगे कोई नहीं बता रहा। सड़कों से लेकर गलियों तक की हालत खराब है , यातायात संसाधन भी अपनी हालत पर रो रहे हैं। महंगाई की मार भी बढ़ती जा रही है। पी एम सी जैसे बैंक डूब गए हैं। ऐसे में यही कहना पडेगा कि सभी दलों का प्रचार ठंडा है मगर मुद्दे गरम हैं।