मुंबई व् आसपास के उपनगरो में छठ पर्व की धूम
राजेश सिन्हा
उत्तर भारत में लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान मुंबई और इसके आसपास भी जोर शोर से मनाया जाता है. ३१ अक्टूबर को नहाय खाय से शुरू यह पर्व आज 1 नवंबर को खरना और 2 नवंबर को भगवान भास्कर को पहला सायंकालीन अघ्र्य और ३ नवंबर को सुबह के अर्ध्य के साथ सम्पन्न हो जाएगा.
मुख्यरूप से बिहार झारखंड के साथ उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्र में बेहद पवित्रता से मनाये जाने वाला यह पर्व अब पुरे विश्व में अपना विशेष महत्व रखने लगा है. दिवाली के अगले दिन से ही छठ पूजा करने वाले घरो में पवित्रता का माहौल बन जाता है, घर की धुलाई मिटटी के घरो में गोबर से फर्श लीपना, चप्पल नही पहनना, इधर उधर नही थूकना, जैसे अनेक नियम इन घरो में बिना बोले ही बच्चो से बुढो तक कड़े ढंग से लागू हो जाता है.
भाई दूज के दो दिन बाद महापर्व छठ की शुरुवात हो जाता है नहाय खाय से. इस दिन घर के सभी लोगो को सुबह जल्दी उठकर नहाना पड़ता है. नवंबर महीने में बिहार झारखंड में कडाके की ठंड पड़ती है ऐसे में सुबह सुबह नहाना एक तरह से तपस्या ही है. छठ पूजा वाले घरो में पहले दिन यानी नहाय खाए वाले दिन मसाले के नाम पर सिर्फ हल्दी और नमक से बनी लौकी की शब्जी, चने का दाल और चावल इतना स्वादिष्ट होता है की बैसा स्वाद वर्ष भर के खानों में नही मिलता है.
दुसरे दिन खरना रहता है. खर – ना दुसरे दिन छठ वर्ती महिला पुरुष के लिए एक तरह से तपश्या रहता है. इस दिन छठ व्रत करने वालो को पूरा दी निराज्ल के साथ मुह में खर यानि लकड़ी का छोटा टुकडा भी ना जाए इसका ध्यान रखना पड़ता है. खरना की रात इन घरो में दूध और चावल का खीर और रोटी बनाया जाता है. च्न्रोदय के साथ चाँद की पूजा कर प्रसाद बाटा जाता है. इस दिन आसपास के लोग ही प्रसाद खाने के लिए इन घरो मे आते है
यह उल्लेख करना आवश्यक है की छठ पूजा में घरों में अनाज के बने पकवान चावल के लड्डू और फल चढ़ाए जाते हैं पकवान और चावल के लड्डू बनाने के लिए भी महिलाएं बेहद शुद्धता से घरों के छतों पर या फिर खुली जगहों पर अनाज को धोकर और धूप में सुखाते हैं छठ पूजा के लिए अनाजों को सुखाय जाने के दौरान इसका पूरा ध्यान रखा जाता है कि कोई चिड़िया या जानवर उस अनाजों को झूठा ना करें इसके लिए उन घरों के बच्चों को दिनभर इसकी रखवाली करने का जिम्मा रहता है
शहरों में इतनी शुद्धता संभव नहीं है इसी के लिए श्रद्धालु रेडीमेड प्रसाद और मिठाई भी चढ़ाने लगे हैं तीसरे दिन सांझ अर्ध का रहता है जिसमें श्रद्धालु सूर्यास्त के समय का ध्यान रखते हुए डूबते सूर्य अर्ध्य देते हैं और चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्थ देकर इस महापर्व की समाप्ति होती है