चुप बे ! फादर दिब्रिटो !
(कर्ण हिंदुस्तानी )
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के नियोजित अध्यक्ष फादर दिब्रिटो ने देश में एक भाषा का विरोध किया है और कहा है कि एक देश एक भाषा से देश में अराजकता फ़ैल जाएगी। फादर फ्रांसिस दिब्रिटो का यह बयान उस वक़्त आया है जब देश में हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करने की बात हो रही है।
मराठी साहित्य सम्मेलन के नियोजित अध्यक्ष पद पर विराजमान इस दो टक्के के व्यक्ति ने अपनी मंशा साफ़ करते हुए यह भी कहा कि मिश्निरी का मतलब धर्म परिवर्तन लगाना गलत है। यानी कि मराठी साहित्य सम्मेलन के नियोजित अध्यक्ष पद पर बैठ कर फादर दिब्रिटो ईसाई मिशनरियों को भी क्लीन चिट दे रहे हैं। ऐसे लोगों को अध्यक्ष पद पर बैठाने वालों की मानसिकता पर भी मुझे तरस आता है।
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आखिर किस अराजकता की बात फादर फ्रांसिस दिब्रिटो कर रहे हैं ? या फिर फादर दिब्रिटो देश की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को चेतावनी देना चाहते हैं। एक देश एक भाषा की यदि हम बात करें तो जब भी एक राज्य का व्यक्ति दूसरे राज्य में किसी काम से जाता है तो वहाँ वह हिंदी में बात करने की कोशिश करता है , इसके बाद धीरे धीरे वह उस राज्य की भाषा को सीखता है।
ऐसे में देश को एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य हिंदी ही करती है , इसे मानने में हर्ज़ ही क्या है ? महाराष्ट्र राज्य मराठी साहित्य सम्मेलन को दरकिनार कर यदि हिंदी की बात करें तो हिंदी वालों का दिल तो इतना बड़ा है कि डॉ दामोदर खड़से को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। खड़से जी ने हिंदी की जो सेवा की है वह अतुलनीय है।
मगर उन्होंने कभी भी हिंदी को द्वेष भाव से नहीं देखा। जबकि फादर फ्रांसिस दिब्रिटो की भाषा से हिंदी द्वेष की भावना झलक रही है। ऐसे व्यक्ति को भाषा के नाम पर अराजकता फैलाने का आरोप लगाकर सलाखों के पीछे धकेल देना चाहिए। हिंदी देश को एक सूत्र में बाँधने का काम कर सकती है और हिंदी ही राष्ट्र भाषा होने लायक है। कोई फादर फ्रांसिस दिब्रिटो यदि इस को लेकर अराजकता की बात करता है तो उसको सबक सिखाना ही होगा।
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