समीर वानखेड़े की ईमानदारी पर सवाल, बेशर्म महाराष्ट्र सरकार
(कर्ण हिंदुस्तानी )
नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो के समीर वानखेड़े ने जब से शाहरुख़ खान की बिगड़ी औलाद को पकड़ा है तब से महाराष्ट्र मैं सत्ताधारी दल के तमाम नेताओंं में भूचाल आ गया है। राज्य केे मुख्यमंत्री उधव ठाकरे के साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताओंं मैं एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े को गलत साबित करने की होड़ लग गई है।
शरद पवार की राजनीतिक पार्टी रााकपा के मंत्री नवाब मलिक तो ऐसे बिलबिला उठे हैं जैसे उन्हें लगने लगा है कि बस अब वानखेड़े उनकी गर्दन भी पकड़ ही लेंगे।
वानखेड़े जैसे ईमानदार अधिकारी की तारीफ़ करने के बजाए , उसकी कमजोर नसें तलाशना का काम किया जा रहा है। उसकी कितनी बीवियां हैं , उसने कब और कैसे शादी की ?
नवाब मलिक जैसा मंत्री वानखेड़े को खलनायक साबित करने पर तुला है। आश्चर्य की बात है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मामले में मौन धारण करके बैठे हुए हैं। या यूँ कहें कि उन्होंने भी अपनी मूक सहमति मलिक को दी हुई है।
ड्रग्स जैसे गंभीर मुद्दे पर एक कैबिनेट मंत्री नारकोटिक्स विभाग को ही दोषी बताने लगे तो दाल में काला नज़र आने लगता है। कबाड़ी से मंत्री बने नवाब मलिक जैसे लोगों को ना तो नारकोटिक्स विभाग की कार्यवाही पर विश्वास है और ना ही अदालत पर।
इस तरह का हस्तक्षेप यदि होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब कोई भी अधिकारी काम करने से पहले दस बार सोचेगा। दो टक्के के नाचने गाने वाले शाहरुख़ खान के सामने एक पढ़े लिखे अधिकारी को बौना साबित करने की कोशिश भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
नवाब मलिक को सोचना चाहिए कि वह क्या कर रहे हैं ? किसी भी विधायक अथवा मंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी भी जांच एजेंसी की जांच को प्रभावित करे।
यदि नवाब मलिक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लग रहा है कि समीर वानखेड़े गलत कर रहे हैं तो वह अदालत का दरवाज़ा खटखटाने को आज़ाद है। मगर सभी को पता है कि वानखेड़े सही कदम उठा रहे हैं।
महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार का आलम यह हो चुका है कि कोई जब हमारी नहीं सुनेगा तो उसे रिश्वतखोर साबित कर देंगे । उसके आसपास के लोगों को सरकारी गवाह बनाकर ,अधिकारी की बदनामी कर देंगे ।
पूर्व पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह के मामले में भी यही हुआ। उन्होंने गृहमंत्री अनिल देशमुख की रिश्वतखोरी की पोल खोल दी और उसके बाद राजनीती के उचक्कों ने परमवीर सिंह के खिलाफ दशकों पहले के कई मामले खोलने शुरू कर दिए।
इसी तरह फिल्म अभिनेता सलमान खान के हिट एंड रन केस में मामले के एकमात्र चश्मदीद गवाह रविंद्र पाटील की हालत को भी एक बार याद करना आवश्यक है।
पुलिस कांस्टेबल होने के बावजूद रविंद्र पाटील एनसीपी प्रमुख समीर वानखेड जैसेही कर्तव्यनष्ठ थे और अंत तक अपने बयान पर डटे रहे।
लेकिन उन्हें भी पुलिस विभाग के आला अफसरों से लेकर राजनीतिक दबाव जबरदस्त रूप से झेलना पड़ा उन्हें शारीरिक मानसिक के साथ पारिवारिक झमेले भी सहने पडा।
रविंद्र पाटील को ना सिर्फ पागल घोषित करने की कोशिश की गई बल्कि वर्षों तक वह पागल की तरह जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो गए और इन्हीं कारणों से उस मामले में सलमान खान निर्दोष छूट गए।
अब समीर वानखेड़े की भी वही दशा करने की तैयारी है। उसके ही लोगों को मीडिया के सामने पेश करके वानखेड़े को रिश्वतखोर साबित करने का खेल खेला जाने लगा है।
क्या यह गलत नहीं है ? महाराष्ट्र की राजनीती ने इसके पहले मुंबई महानगर पालिका के उपायुक्त गोविन्द राघव खैरनार को भी इसी तरह से सताया था।
तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार थे और खैरनार ने आरोप लगाया था कि दाऊद की अवैध इमारतों को ना तोड़ने के लिए शरद पवार उन पर दवाब बना रहे हैं।
उस वक़्त शिवसेना ने खैरनार को अपना समर्थन देकर सत्ता हासिल की और उसके बाद खैरनार के द्वारा लगाए गए आरोपों की कोई जांच नहीं हुई।
आज खैरनार कहाँ हैं किसी को पता नहीं। मगर शरद पवार आज भी राजनीती में बने हुए हैं। मुंबई और अन्य राज्यों में नशे का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है और सभी जानते हैं इसके पीछे दाऊद का गिरोह ही काम कर रहा है।
इस गिरोह को ध्वस्त करने के बजाए गिरोह के फैले जाल को काटने का काम करने वाले अधिकारी को बदनाम करने का कार्य महाराष्ट्र सरकार द्वारा बेशर्मी से किया जा रहा है जो कि ना सिर्फ गलत है बल्कि निंदनीय भी है।