भोजपुरी फिल्में आगाज़ से अंत की ओर (भाग – २ )
( डी. यादव )
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की प्रेरणा से भोजपुरी फिल्मों का आगाज़ तो गया और बड़े पैमाने पर भोजपुरी फिल्में बनना भी शुरू हुईं लेकिन आज हालात यह हैं की भोजपुरी फिल्मों में द्वीअर्थी संवादों की भरमार है। एक दौर वह भी था जिसे हम १९९०-९२ का दौर के रूप में जानते हैं। इस दौर में पूरे देश में भोजपुरी फिल्मों का ऐसा जलवा बना था कि हिंदी फिल्मों के दिग्गज कलाकार भी भोजपुरी फिल्मों की ओर लालायित हो गए थे।
अमिताभ बच्चन तक भोजपुरी फिल्मों के रूपहले परदे पर उतर गए थे। मात्र तीस – पैंतीस लाख में बनने वाली भोजपुरी फिल्मों की तरफ सभी आकर्षित थे। आज फिल्मों का बजट भी बढ़ा और बजट के साथ – साथ अश्लीलता भी बढ़ी है। हालात तो यह हैं कि कुछ दबंग किस्म के दर्शक खून खराबे पर भी उतर चुके हैं। इसका उदाहरण यह है कि पिछले दिनों बिहार के सहरसा में स्टेज पर अपनी प्रस्तुति दे रही एक नृत्यांगना को एक युवक ने गोली मार दी।
जिस समय यह गोली मारी गई वह नृत्यांगना पियवा से पाहिले हमार राहलु गाने पर नाच रही थी। ऐसा नहीं है कि भोजपुरी फिल्मों में सुरसा के मुख की तरह बढ़ रही अश्लीलता के खिलाफ कोई खड़ा नहीं हुआ लेकिन बाद में आगे कुछ नहीं हुआ। अश्लीलता के विरोध में जुलाई २०१८ में पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने एक अभियान की शुरुवात की थी। इस अभियान में हस्ताक्षर कर बिहार , उत्तर प्रदेश और झारखंड के मुख्यमंत्रियों को ज्ञापन भी भेजे गए।
मगर दुखद बात यह रही कि जिस मंजू वर्मा से अश्लीलता को रोकने की मांग की जा रही थी वह मंजू वर्मा बाद में मुज़फ़्फ़रपुर शेलटर होम लिप्त पायी गई। आज हालत यह है कि भोजपुरी की अधिकतर फिल्मों में किसी पोर्न मूवी से भी बदतर संवाद रहते हैं। इन संवादों के चलते अच्छे घरों के भोजपुरी दर्शकों ने भोजपुरी फिमों की तरफ से मुँह मोड़ लिया है। भोजपुरी फिमों के प्रति आकर्षण ने कुछ ऐसे लोगों को भी निर्माता निर्देशक बनवा दिया जिन्हें अश्लीलता के सिवा कुछ सूझता ही नहीं है। आज भोपुरी फिल्मों को सॉफ्ट पोर्न की नज़र से देखा जाने लगा है। जिससे एक अच्छी भाषा की फिल्मों का अंत होने की कगार पर पहुँच गया है।