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किस्सा IC 814 विमान अपहरण केस (१९९९) के डिटेक्शन की असली कहानी

 

साभार – नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर (रिटायर्ड) सुनील मेहरोत्रा के फेसबुक वॉल से

दिसंबर,1999 के इंडियन एयरलाइंस के विमान IC 814 के हाईजैकिंग प्रकरण को दुनिया शायद ही कभी भुला पाए। इस हाईजैक ड्रामे पर बहुत कुछ लिखा गया, लेकिन केस के डिटेक्शन को लेकर असल सच फिर भी कभी सामने नहीं आया।

रिटायर एसीपी विलास तुपे उन दिनों मुंबई क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट यानी सीआईयू के चीफ हुआ करते थे। उन्होंने एनबीटी को बताया कि मुंबई से पाकिस्तान रुपयों की डिमांड को लेकर की गई एक आतंकी की कॉल ने पूरे देश की जांच एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा और बाद में एक-एक कर इस हाईजैक केस के मुंबई में बैठे आरोपी अरेस्ट हुए।

24 दिसंबर, 1999 को IC 814 फ्लाइट काठमांडु से दिल्ली के लिए उड़ी थी। टेकऑफ करने के 30 मिनट के अंदर उस विमान में बैठा एक यात्री पिस्टल निकालकर अपनी सीट से उठा और बताया कि इस प्लेन को हाईजैक कर लिया गया है।

इसके बाद लाल मास्क में चार और यात्री अपनी-अपनी सीट से उठे और प्लेन में अलग-अलग दूरी पर जा खड़े हुए। अपहरणकर्ता विमान को लाहौर ले जाने के लिए कहने लगे, लेकिन वहां अर्थारिटी ने प्लेन को वहां लैंड करने से मना कर दिया।

चूंकि विमान में ईंधन कम हो रहा था, इसलिए उसे अमृतसर एयरपोर्ट पर उतारा गया। अपहरणकर्ता विमान में ईंधन भरने की डिमांड करने लगे अन्यथा यात्रियों के कत्ल की धमकी दी जाने लगी।

इस दौरान एक यात्री की हत्या कर भी दी गई, लेकिन भारतीय प्रशासन ने ईंधन भरने की अपहरणकर्ताओं की मांग नहीं मानी। विमान इसके बाद लाहौर के लिए उड़ा, जहां वहां के प्रशासन ने एयरपोर्ट बंद कर दिया, ताकि विमान लैंड न कर सके।

तब पायलट ने कंट्रोल टॉवर को सूचना दी कि प्लेन क्रैश हो जाएगा, यदि उसे लैंड करने की परमिशन नहीं दी गई। अपहरणकर्ताओं ने भोजन, पानी और ईंधन की डिमांड की, जिसे पूरा किया गया।

विमान ने वहां से काबुल एयरपोर्ट के लिए उड़ान भरी। लेकिन रात में सुविधा न होने की वजह से उसे काबुल एयरपोर्ट पर उतरने नहीं दिया गया ।

प्लेन, वहां से मस्कट के लिए उड़ा, लेकिन वहां उसे लैंड करने नहीं दिया गया। इसके बाद दुबई एयरपोर्ट के लिए मुड़ा, लेकिन वहां भी उसे उतरने की इजाजत नहीं मिली।

लेकिन पायलट को दुबई के अल मिनहर एयर बेस पर 25 दिसंबर,1999 को कुछ शर्तों के साथ उतरने की परमिशन दी गई। ईंधन और भोजन के बदले में यहां 27 यात्रियों को छोड़ा गया।

यहां से प्लेन को कंधार ले जाया गया। वहां हाईजैकर्स ने मौलाना मसूद अजहर व भारतीय जेलों में बंद कई अन्य आरोपियों को छोड़ने की डिमांड की और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर भी मांगे।

27 दिसंबर को हाईजैकर्स ने उनकी डिमांड पूरी करने की एक डेडलाइन फिक्स की। 29 दिसंबर तक भारतीय डिप्लोमेट्स और हाईजैकर्स के बीच बातचीत चलती रही।

पूरी दुनिया की तरह तब के मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ डी. शिवानंदन भी टीवी पर IC 814 से जुड़े घटनाक्रम को देख रहे थे। लेकिन तब तक उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस केस का मुंबई से भी कोई कनेक्शन है।

एकाएक उनके केबिन में उनका रीडर आता है और बोलता है कि खुफिया एजेंसी रॉ की टीम दिल्ली से आई है और उनसे फौरन मिलना चाहती है।

हेमंत करकरे उन दिनों रॉ में थे। वह और उनके दो साथी शिवानंदन को आकर बताने लगे कि IC 814 अपहरणकांड का मुंबई लिंक मिला है और हमें मुंबई क्राइम ब्रांच की मदद की जरूरत है।

डी. शिवानंदन ने तब के मुंबई सीपी रॉनी मेंडोंसा को इसकी सूचना दी। करकरे ने इसके बाद हाईजैकर्स से जुड़ी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं शिवानंदन से शेयर कीं।

इन सूचनाओं में एक जानकारी यह थी कि हाईजैकर्स का एक साथी मुंबई में है और मोबाइल कॉन्फ्रेंसिंग से पाकिस्तान टेटर ग्रुप के संपर्क में है।

करकरे ने हाईजैकर्स के मुंबई साथी का मोबाइल नंबर डी शिवानंदन को कागज पर लिख कर दिया। करकरे ने उन्हें यह भी बताया कि उन्होंने इस मोबाइल धारक का नाम और अड्रेस चेक किया, लेकिन फर्जी निकला।

विलास तुपे ने बताया कि डी. शिवानंदन ने इसके बाद मुंबई क्राइम ब्रांच की सभी यूनिट्स के अधिकारियों की अरजेंट मीटिंग बुलाई।

एक टीम को तत्काल मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर के पास भेजा गया, ताकि मुंबई में जो हाईजैकर्स के साथी के बारे में करकरे ने बताया, उसकी कॉल्स डिटेल और टेलिफोन टॉवर आईडी के बारे में जानकारी मिल सके।

विलास तुपे के साथ सुनील टेमकर को फॉरेंसिक मैथेड से कॉलर के मोबाइल को मॉनिटर करने को कहा गया। क्राइम ब्रांच के सभी अधिकारियों को साफ निर्देश दिए गए कि मीडिया से इस दौरान कोई भी ऑफ या ऑन रेकॉर्ड बात नहीं करेगा।

करीब तीन दिन तक कॉलर की बातचीत सुनने के बाद मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम इतना ही जान पाई कि जो मुंबई में कॉल कर रहा है, उसके घर के आसपास मस्जिद है, क्योंकि अजान की आवाज आ रही थी।

उस इलाके में भैंसें भी बहुत हैं, क्योंकि भैंसों की भी आवाज लगातार आ रही थी। लेकिन बातचीत सुनने की उसी प्रकिया में मुंबई क्राइम ब्रांच टीम को एक महत्वपूर्ण जानकारी 28 दिसंबर, 1999 को शाम 6 बजे पता चली।

मुंबई में बैठे हाईजैकर्स के साथी ने पाकिस्तान कॉल किया कि उसके पास आगे की प्लानिंग के लिए कोई रकम नहीं है। आगे की साजिश के लिए उसे एक लाख रुपये चाहिए।

पाकिस्तान में बैठे उसके सरगना ने करीब आधे घंटे में रुपयों का इंतजाम करने को कहा। मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम उस आधे घंटे का इंतजार करती रही, ताकि पता चल सके कि रकम के लिए हाईजैकर्स के मुंबई साथी को कहां भेजा जाता है।

करीब 45 घंटे बाद पाकिस्तान से मुंबई कॉल आई और कॉल करने वाले को नागपाडा के एक होटल के बाहर जाने और वहां एक हवाला ऑपरेटर से एक लाख रुपये कलेक्ट करने को कहा गया।

मुंबई आई रॉ की टीम और मुंबई क्राइम ब्रांच टीम ने फौरन इसकी सूचना केद्रीय गृह मंत्रालय को दिल्ली में दी। करीब 20 मिनट तक दिल्ली में हाई-लेवल मीटिंग हुई और फैसला किया गया कि मुंबई के कॉलर को रकम लेने के दौरान तत्काल गिरफ्तार न किया जाए, क्योंकि हाईजैकर्स ने यात्रियों को अभी भी छोड़ा नहीं है।

तब के रॉ चीफ ने मुंबई में क्राइम ब्रांच टीम और रॉ के अधिकारियों को निर्देश दिया कि मुंबई के कॉलर को नागपाडा के होटल में रकम लेने के दौरान उसकी पहचान की जाए और पता किया जाए कि वह वहां से कहां जाता है।

मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ ने करीब एक दर्जन अधिकारियों को नागपाडा के होटल के बाहर सादी वर्दी में भेजा। रात करीब साढे 9 बजे जैसे ही आरोपी ने वहां रकम ली, उसकी शिनाख्त कर ली गई।

वह टैक्सी में बैठा। मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारी भी टैक्सी में बैठे। आरोपी टैक्सी से मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर उतरा और चर्चगेट-बोरिवली की लोकल ट्रेन में बैठा। मुंबई क्राइम ब्रांच अधिकारी भी उसी लोकल में बैठ गए।

करीब 35 मिनट बाद आरोपी जोगेश्वरी स्टेशन उतरा और फिर ऑटो में बैठकर कहीं जाने लगा। मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारी भी तीन अलग-अलग ऑटो में बैठे और आरोपी के ऑटो को फॉलो करते रहे।

आरोपी जोगेश्वरी के बेहरामबाग में उतरा और एक चॉल का दरवाजा खटखटाया। किसी ने दरवाजा खोला और बंद कर दिया। मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने दूर से आरोपी का ठिकाना देख लिया। फौरन यह सूचना दिल्ली में रॉ के अधिकारियों को भेज दी गई। मुंबई क्राइम ब्रांच अधिकारियों को वेट और वॉच करने को कहा गया।

31 दिसंबर, 1999 को जब कंधार में IC 814 प्लेन के यात्रियों को रिलीज कर दिया गया, तो दिल्ली से रॉ चीफ के निर्देश पर मुंबई क्राइम ब्रांच टीम को बेहराम बाग में मुंबई से पाकिस्तान कॉल करने वाले आरोपी के घर छापा डालने को कहा गया।

इसके बाद बुलेट प्रूफ पहनकर मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारी घुसे। वहां से कुल पांच आरोपी—रफीक मोहम्मद, अब्दुल लतीफ, मुस्ताक आजमी, मोहम्मद आसिफ बबलू और गोपाल सिंह मान पकड़े गए। रॉ और मुंबई क्राइम ब्रांच टीम ने सभी से पूछताछ की। पता चला कि अब्दुल लतीफ मुंबई से पाकिस्तान में टेरर ग्रुप के संपर्क में था।

मोहम्मद आसिफ और रफीक मोहम्मद पाकिस्तानी नागरिक थे, जबकि गोपाल मान नामक आरोपी नेपाली था। सभी आरोपियों ने यह भी बताया कि बेहराम बाग में उनके साथ तीन और पाकिस्तान नागरिक कई दिनों से थे, लेकिन वह ऐन वक्त पर फरार हो गए थे।

अब्दुल लतीफ ने भारतीय जांच टीम को उन हाईजैकर्स के नाम बताए, जो IC 814 प्लेन में थे। इनमें इब्राहिम अख्तर बहावलपुर का और सैयद अख्तर कराची का मूल निवासी था। सुमी अहमद करी और मिस्त्री जहूर इब्राहिम भी कराची के रहनेवाले थे, जबकि शाकिर नामक पांचवा हाईजैकर सिंध का मूल निवासी था।

यह सभी आरोपी जुलाई, 1999 से जोगेश्वरी के वैशाली नगर में रह रहे थे। इन लोगों ने मुंबई में कंप्यूटर क्लास जॉइन की थी और फर्जी दस्तावेजों पर वरली का अड्रेस देकर भारतीय पासपोर्ट भी बनवा लिए थे। इसके लिए इन्होंने छह पासपोर्ट अधिकारियों, दो पोस्टमेन और दो पुलिस वालों को मोटी रकम भी दी थी, ताकि इनके अड्रेस का वेरिफिकेशन न हो सके।

इन्हें पासपोर्ट ऑफिस के गेट पर भारतीय पासपोर्ट मिल गए थे। इन पासपोर्ट को लेने के बाद यह लोग भारत के अलग-अलग एयरपोर्ट्स पर गए, ताकि किसी प्लेन को हाईजैक करने की साजिश रची जाए। बाद में इन्होंने नेपाल जाकर IC 814 को हाईजैक किया।

इस सूचना के बाद पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा, अरुण आवटे/ या अरुण बोरुडे (नाम भूल रहा हूं), दया नायक और ज्ञानेश देवडे की टीम ने जोगेश्वरी के वैशाली नगर में छापा मारा और वहां से कई महत्वूपर्ण दस्तोवज और फोटो जब्त किए। बाद में यह केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था।