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शिवसेना – कांग्रेस की पुरानी है यारी. और राकपा से है रिश्तेदारी

(कर्ण हिन्दुस्तानी )
महाराष्ट्र की राजनीती में चल रही उठापटक के बीच कुछ लोग शिवसेना और कांग्रेस के गठजोड़ को गलत बताते हुए बातें कर रहे हैं।  ऐसे लोगों को पता नहीं है कि खुद बालासाहेब ठाकरे ने कई बार कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया था और आपातकाल को भी देश हित वाला निर्णय बताया था। बाला साहेब जी के नेतृत्व में शिवसेना का गठन १९ जून १९६६ को हुआ था।

 इसके बाद १९७१ में शिवसेना ने अपना पहला चुनाव लड़ा था। शिवसेना ने  पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. ये सीटें थीं  बॉम्बे सेंट्रल साउथ, बॉम्बे सेंट्रल, धुले, रत्नागिरी और पुणे. मगर  एक भी सीट पर शिवसेना के प्रत्याशी  को विजय  नहीं मिली बल्कि  तीन सीटों पर तो जमानत भी  जब्त हो गई थी।
. इंदिरा गांधी ने ओल्डगार्ड्स से किनारा कर लिया था और नया राजनीतिक दल  बना लिया था।  शिवसेना ने मोरारजी देसाई वाली कांग्रेस यानी कि कांग्रेस (O) के साथ गठबंधन किया.  इंदिरा गांधी सत्ता में आ गईं. और फिर लगा आपातकाल और शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने इस इमरजेंसी का खुलेआम समर्थन कर दिया.

31 अगस्त, 1975 को उन्होंने मार्मिक पत्रिका  में लेख  लिखकर कहा कि इंदिरा गांधी ने देश में फैली असमाजिकता को दूर करने के लिए ही आपातकाल की घोषणा की है और शिवसेना इस आपातकाल का समर्थन करती है।


1977 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो बाल ठाकरे ने कांग्रेस का समर्थन करते हुए शिवसेना के  प्रत्याशी  नहीं उतारे. इतना ही नहीं, बाला साहेब  ठाकरे ने इंदिरा गांधी के लिए  चुनाव प्रचार भी किया. बाद के दिनों में शिवसेना को इसका फल  भी भुगतना पड़ा.

1978 के महाराष्ट्र  विधानसभा चुनाव में बाल ठाकरे ने राज्य  में 35 सीटों पर प्रत्याशी  उतारे, लेकिन  एक भी प्रत्याशी  जीत कर नहीं आया . इस हार से शिवसेना प्रमुख  बाला साहेब  ठाकरे इतने परेशान हुए कि उन्होंने  अपने पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी. परन्तु  बाद में उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया और कहा कि वो शिवसैनिकों के कहने पर अपना इस्तीफा वापस ले रहे हैं  

   वर्ष  1979 में मुंबई मनपा  के चुनाव थे. शिवसेना ने इंडियन मुस्लिम लीग के नेता गुलाम मोहम्मद बनतवाला के साथ गठबंधन  किया और  दोनों दलों  ने एक साथ  रैली को संबोधित भी किया, लेकिन उनका गठजोड़ आगे के चुनावों में टिक  नहीं  पाया. शिवसेना पुनः   कांग्रेस के पाले में खड़ी दिखी. 1980 में बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता रहे अब्दुल रेहमान अंतुले से अपनी दोस्ती की वजह से चुनाव में कांग्रेस का समर्थन कर दिया और एक बार फिर से शिवसेना चुनाव से दूर रही.
इसके बाद 12 अप्रैल, 1982 को बाल ठाकरे ने मार्मिक में एक और लेख लिखा और इस लेख के जरिए इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का समर्थन कर दिया. बाल ठाकरे ने मुंबई की कपड़ा  मिलों में हुई हड़ताल को खत्म करने  के लिए कांग्रेस के समर्थन का ऐलान किया था. और ये समर्थन अंतिम समर्थन था , जब शिवसेना ने कांग्रेस का समर्थन किया था.

जब कांग्रेस नेता बाबा साहेब भोसले ने एआर अंतुले की जगह ले ली, तो बाल ठाकरे ने कांग्रेस से किनारा कर लिया. साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या  के बाद  लोकसभा के चुनाव हुए, तो शिवसेना के नेता मनोहर जोशी के साथ ही एक और शिवसेना नेता ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि मनोहर जोशी हार गए, लेकिन बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की नींव का पहला पत्थर रखा जा चुका था.

अब फिर एक बार इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है।  बीजेपी और शिवसेना का चुनावी गठबंधन लगभग खत्म हो चुका है और शिवसेना फिर कांग्रेस की गोद में बैठती नज़र आ रही है। इस बार एनसीपी प्रमुख  शरद पवार ने शिवसेना के प्रति नरमी दिखाई है।  वैसे ज्ञात हो कि शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले स्वर्गीय बाला साहेब की बहन सुधा सुले के बेटे सदानंद भालचंद्र सुले के साथ ब्याही हुई है।  जिससे पवार और ठाकरे घराना एक दूसरे के प्रति नरमी बरतते हैं।  अब देखना यह है कि महाराष्ट्र की राजनीती का ऊँट किस करवट बैठता है। 

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