लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन बना जेब कतरो एवं बैग लुटेरो का अड्डा।
लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन मुंबई का एक बड़ा टर्मिनल स्टेशन है जहाँ से उत्तर एवं दक्षिण की ओर आने-जाने वाली गाड़ियों की संख्या करीबन 154 है। यहाँ से रोज करीब हजारों यात्री, खासकर उत्तर भारत की ओर, यात्रा शुरू करते है और खत्म करते है। आजकल यह स्टेशन पूरी तरह जेबकतरों एवं बैग लुटेरो के कब्जे में है।
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लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन की रेलवे पुलिस और रेलवे सुरक्षा बल स्टेशन पर पूरी तरह मुस्तैद होने का दावा करती है, लेकिन उनके दावो पर शक की सुई जाती है क्योंकि बिना स्टेशन पुलिस की मिलिभगत से इतना बड़ा व्यापार चल नहीं सकता। यदि आपके साथ कोई वारदात (जेब कटना,या बैग चोरी होना) होती है, तो रेलवे पुलिस पहले तो जमकर टाल मटोल करती है,अनेक मामलो में सीधे साधे यात्रियों को तो गालिया देकर भगा देती है.
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हां अगर कोई यात्री डट गया तो उस यात्री की लिखित सूचना कुर्ला रेलवे पुलिस स्टेशन में जाकर करनी पड़ती है. यहाँ यात्रियों की शिकायत के बावजूद बहुत कम FIR दर्ज होती है. लेकिन इस स्टेशन से अपने गंतव्य की यात्रा कर रहे यात्रियों के पास न तो समय होता है और न ही जागरूकता। उन्हें इस बात का पता नहीं होता है कि वे यात्रा के दौरान भी अपनी शिकायत ट्वीट कर सकते हैं या टीटीई के माध्यम से चोरी या उठाईगिरी की शिकायत कर सकते हैं।
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खास बात तो यह है सवारी लेने के लिये प्लेटफार्म पर खुले आम टैक्सी ड्राइवर और ऑटो ड्राइवर घूमते है, इनको रोकने वाला कोई नही है। प्लेटफार्म पर यात्रियों की इतनी अधिक संख्या होने के बावजूद रेलवे प्रशासन ने उनके खान पान के लिये कोई व्यवस्था (रेलवे कैंटीन) नही की है। मुख्य हाल में केवल एक खान – पान घर है जिसपर घटिया स्तर के खाद्य पदार्थ होते हैं जिसे यात्री बस खाने के नाम पर पेट में डाल लेते हैं। बाकी प्लेटफार्म पर खाली नाश्ते की व्यवस्था है जो अपनी क्वालिटी की कहानी खुद सुनाते हैं। निम्न श्रेणी का खाद्य पदार्थ देना और तय शुल्क से ज्यादा पैसा लेना यहाँ की परम्परा बन गई है।
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लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन पर एक नई बात यह देखने को मिलती है की करन्ट आरक्षण का लालच देकर यात्रियों से दलाल रेलवे कर्मियों की मदद से भारी रकम वसूलते हैं और उन्हे कम दूरी का टिकट हाथ में थमा दिया जाता है, (जैसे बनारस जाने वाले यात्री को नासिक तक का टिकट) यात्री अपने को ठगा महसूस तो करता है लेकिन उसके पास शिकायत करने का समय नहीं होता क्योंकि उसे टिकट तभी दिया जाता है जब गाड़ी चलने लगती है।
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इतना बड़ा स्टेशन होने के बावजूद हजारों यात्रियों के लिए प्लेटफार्म नंबर 1 को छोडकर कहीं भी ठन्डे पानी की व्यवस्था नहीं है जहाँ थका-हारा यात्री अपनी प्यास बुझा सके। निरीक्षण के नाम पर प्रतिदिन रेल अधिकारियों की ड्यूटी लगती है लेकिन क्या उन्हे ये सब दिखाई पड़ती है? देखना यह है कि कब तक प्रशासन की आँखें खुलती है।
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