क्या सेटिंग के तहत तय होते है डोंबिवली विधानसभा में विरोधी दल के उम्मीदवार ?
डोम्बिवली विधानसभा क्षेत्र जनसंघ के जमाने से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है और यहां से लगातार भाजपा उम्मीदवार विजय रहे हैं पहले जहां डोंबिवली में भाजपा उम्मीदवार अपने सांकेतिक मतदाताओं की मदद से जीत दर्ज करते थे वहीं अब यहां के उम्मीदवार को शायद यहां के मतदाताओं पर भरोसा नहीं रहा और जैसा कि दिख रहा है कि पिछले दो चुनावों में यहां से प्रमुख विरोधी दल भी ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारते हैं जिससे भाजपा उम्मीदवार को यह सीट भारी मतों से जीतने में कोई दिक्कत ना आए. ताजा मामला इसी विधानसभा चुनाव का है जिससे स्थिति समझी जा सकती है
इस चुनाव में भाजपा ने लगातार तीसरी बार रविंद्र चौहान को यहां से उम्मीदवारी दी है जबकि यहां से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उम्मीदवार मंदार हलवे है और कांग्रेस की तरफ से रोटेरियन महिला राधिका गुप्ता को उम्मीदवारी दी गई है डोंबिवली को वर्षो से शिक्षित और ब्राह्मण बहुल मतदाताओं का गढ़ माना जाता रहा है ऐसे में भाजपा की तरफ से महज दसवीं पास उम्मीदवार रविंद्र चौहान को लगातार तीसरी बार उम्मीदवारी दी गई है जबकि मनसे के तरफ से संघ पृष्ठभूमि के मंदार हलवे और डोंबिवली के शिक्षित वर्ग में अच्छी पकड़ रखने वाली राधिका गुप्ता को उम्मीदवारी दी गई है
डोंबिवली के मतदाताओं में यह धारणा बन गई है की भाजपा विधायक और राज्य में राज्य मंत्री रहे रविंद्र चौहान ने अपने कार्यकाल में डोंबिवली की स्थिति बद से बदतर कर दी है जिससे मतदाताओ में भारी नाराजगी है. और इसके परिणाम इस चुनाव परिणाम में देखे जा सकते थे.
लेकिन यहां से विरोधी दलों ने यहां के मतदाताओं के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है लोगों में असमंजस है कि हम भाजपा उम्मीदवार को मतदान नहीं भी करें तो भी परिणाम तो उनके मन जैसा नहीं होगा। क्योंकि एक तरफ जहां संघ पृष्ठभूमि के मंदार हलवे हैं वहीं दूसरी तरफ राधिका गुप्ते है डोंबिवली के मतदाता किसे वोट करें जिससे भाजपा नेतृत्व को सबक मिल सके यह उनके लिए निर्णय करना मुश्किल हो रहा है
उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी डोंबिवली के मतदाता भाजपा उम्मीदवार से इसी तरह नाराज थे और उस दौरान भी विरोधी दल ने ऐसे ही असमंजस की स्थिति पैदा करने वाले उम्मीदवार उतारे थे उस दौरान शिवसेना और भाजपा दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ी थी और यहां से शिवसेना के साथ मनसे ने भी यहां के भूमि पुत्र आगरी समाज के दीपेश महात्रे (शिवसेना) और हरिश्चंद्र पाटिल (मनसे) से उम्मीदवारी दी थी और आपसी मत विभाजन के कारण उस चुनाव में डोम्बिवली से भाजपा उम्मीदवार रविंद्र चौहान जीते थे. इस बार की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है ऐसे में असमंजस की स्थिति में डोंबिवली के मतदाता क्या निर्णय लेते हैं यह समय ही बताएगा
नैतिकता ख़त्म, नाहि कोई निति, फिर ये कैसी बीजेपी ??